बच्चों के लिए सरल भाषा में रामायण की 7 प्रेरक कहानियां जब हम छोटे थे, तब हमारे दादा-दादी हमें रामायण की कहानी, रामायण कथा, प्रभु श्री राम की कहानियां सुनाया करते थे. दशहरे की छुट्टियों में राम-लीला देखने जाना, हमारा सबसे बड़ा कार्य होता था. कई बार हम धनुष और गदा सब ख़रीद कर लाते थे. हमें खेल-खेल में ही नैतिक मूल्य सिखा दिए जाते थे.
रामायण की कहानियां
जब मेरे बच्चे छोटे थे, तो वह भी सवाल पूँछते थे दशहरा क्यों मनाते है? दिवाली क्यों मनाई जाती हैं?रावण के पुतले को क्यों जलाते हैं? मैं भी उनके सारे प्रश्नो के उत्तर देती थी. उन्हें बच्चों की कहानियां और रामायण की कहानी सुनाया करती थी.
मैंने सोचा कि आप सब भी अपने बच्चों की जिज्ञासा पूरी करना चाहते होंगे. बच्चों को हमार देश के सबसे बड़े महाकाव्य रामायण से मिलने वाली सीख बच्चों को सिखाना चाहते होंगे.
लीजिए, मैं आपके बच्चों के लिए रामायण की कहानियां इकट्ठी करके लायी हूँ. मैंने बच्चों की रामायण की कहानियाँ बहुत सरल भाषा में लिखी हैं, जिसे बच्चे बहुत आसानी से समझ सकेंगे.
आप रामायण की सुप्रसिद्ध लघु कथाओं को बच्चों को सुनाओ. उनकी कल्पना शक्ति को बढ़ाओ और उन्हें अपने देश की संस्कृति से मिलवाओं.
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रामायण की कहानियां बच्चों के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
प्रभु श्री राम अच्छे गुणो से भरपूर थे. त्रेता युग में जन्मे सबके आदर्श, न्यायप्रिय राजा श्री राम की कहानियाँ बच्चों को नीति और धर्म सिखाती हैं.
रामायण की कहानियां हमारे देश की संस्कृति की धरोहर है. भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के प्यार, बलिदान, एक भाईं का दूसरे भाई में विश्वास एकता में शक्ति की सीख देता है.
सीता माँ का समर्पण उनका पति प्रेम दिखता है. रावण के चरित्र से शिक्षा मिलती है कि अहंकार आदमी को विनाश की ओर ले जाता है, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली हो.
बच्चों को यह सीख भी मिलती है कि कितना भी कठिन समय हो संयम से काम लेना चाहिए. बच्चों को नैतिक मूल्यों की कहानियाँ माता-पिता का आदर करना और अनुशासन में रहना सिखाती हैं.
आप बच्चों की इन मज़ेदार कहानियो से बुराई पर अच्छाई की जीत, अधर्म पर धर्म की जीत का पाठ बच्चों को सिखा सकते हैं. बच्चों के मन में अच्छे संस्कार डाल सकते हैं.
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बच्चों के लिए रामायण की 7 अनूठी और प्रेरक कहानियां
यह माना जाता है कि सबसे पहले रामायण महर्षि बाल्मीकी ने संस्कृत में लिखी. वे एक बहुत महान कवि थे. उन्होंने रामायण 5th Century B C में लिखी थी.
ऋषि ने 24000 श्लोक लिखे और यह संसार का सबसे बड़ा महाकाव्य है. उसके बाद बहुत सारे बुद्धिमानो ने इस काव्य को कई बार लिखा है. जिसमें से सबसे प्रसिद्ध तुलसीदास ने रामचरितमानस अवधि भाषा में लिखी. यह आज भी बहुत प्रसिद्ध है. रामायण की कहानियां 7000-10000 साल पुरानी है.
१. राम का जन्म (बच्चों के लिए रामायण की कहानियां)
हज़ारों साल पहले उत्तरी भारत में एक शक्तिशाली राज्य था, कौसाला. उसकी राजधानी थी, अयोध्या. यह सरयू नदी के किनारे थी. इक्ष्वाकु वंश इस पर राज करता था और ये सूर्य भगवान के वंशज थे.
अयोध्या के राजा दशरथ थे और उनकी तीन रानियाँ थी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा. लेकिन राजा दशरथ की कोई संतान न थी. वह हमेशा चिंता में डूबे रहते कि उनके बाद उनके राज्य और उनकी प्रजा की देखभाल कौन करेगा?
राजा दशरथ के राजपुरोहित वशिष्ठ ने सलाह दी कि वह संतान की प्राप्ति के लिए एक यज्ञ करे और भगवान से संतान का वरदान माँगे. राजा दशरथ ने यज्ञ किया और भगवान ख़ुश हुए. पवित्र अग्नि में खीर का कलश लेकर प्रकट हुए. राजा से कहा कि वह इस प्रसाद को अपनी रानियों को खिलाएँ.
कुछ दिन बाद रानी कौशल्या ने राम को, रानी कैकेयी ने भरत को और रानी सुमित्रा ने जुड़वां बेटों लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया. चारो भाई प्यार से रहते थे और एक साथ बड़े हो रहे थे. शुरू से राम और लक्ष्मण के बीच में अटूट भाईचारा था. उन्हें एक दूसरे से कोई भी अलग नहीं कर सकता था.
महर्षि विश्वामित्र उन चारों राजकुमारों को शस्त्रों और शास्त्रों का ज्ञान दे रहे थे. उन्हें वे सारी विद्या सिखा रहे थे जिससे वे एक महान राजा और वीर योद्धा बन सके.
यह बच्चों की कहानियों में सबसे अच्छी कहानी है.
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२. मारीच और सुबाहु युद्ध
राजकुमारों के गुरु ऋषि विश्वामित्र बहुत क्रोधी थे. उनसे सब डरते थे. उन्हें कोई भी नाराज़ नहीं करना चाहता था. गुरु के आश्रम का नाम सिद्ध आश्रम था. दो राक्षस मारीच और सुबाहु ऋषि को यज्ञ पूरा नहीं करने देते थे. उनको बहुत परेशान करते थे. उन्होंने बहुत आतंक फैलाया था. मारीच और सुबाहु राक्षसी तड़का के पुत्र थे. जिसे भगवान राम ने पहले ही मार दिया था.
ऋषि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से सहायता माँगी और राजकुमार राम और लक्ष्मण को उनकी सहायता करने के लिए भेजने के लिए कहा.
दोनो राजकुमार ऋषि के साथ चल पड़े. अगले दिन ऋषि के शिष्य जल्दी सवेरे उठे और एक महा यज्ञ की तैयारी शुरू कर दी. राम और लक्ष्मण को पहरे पर नियुक्त किया.
यह एक बहुत लम्बा यज्ञ था. पाँच दिन तक तो सब शांति से चलता रहा. पर छठे दिन राक्षस यज्ञ को नष्ट करने चले आए. मारीच और सुबाहु बहुत शक्तिशाली थे. राम और लक्ष्मण से उनका बहुत लम्बा युद्ध चला.
दोनो राक्षसों के पास ऐसी जादुई शक्तियाँ थी कि उनके ऊपर सौ तीरों का भी असर नहीं हो रहा था.
अंत में मानवास्त्र को राम ने मारीच के सीने में मारा आग्नेयस्त्र को राम ने सुबाहु को मारा. वे दोनो उड़ते-उड़ते समुद्र में जा कर गिरे. इस तरह राम और लक्ष्मण ने ऋषि विश्वामित्र का आश्रम राक्षसों से मुक्त किया. ये बच्चों की सबसे अच्छी कहानियों में से एक सर्वश्रेष्ठ कहानी है.
३. सीता जी का स्वयंवर (रामायण की कहानियां)
सीता वैदेही की राजधानी मिथिला की राजकुमारी थी. राजा जनक को सीता खेत में मिली. राज जनक ने उन्हें पृथ्वी की बेटी मानकर गोद ले लिया. उर्मिला राजा जनक की पुत्री थी. सीता और उर्मिला एक दूसरे को बहुत प्यार करती थी.
सीता बहुत समझदार और सुशील थी. उन्हें शास्त्रों का बहुत ज्ञान था. जब सीता शादी के लायक़ हुई, तो राजा जनक ने उनके लिए योग्य वर ढूँढने के लिए एक स्वमवर किया.
राजा जनक के पास एक धनुष था, जिसका नाम पिनाका था. यह भगवान शिव का धनुष था. राजा जनक ने स्वमवर में एक शर्त रखी कि जो राजकुमार धनुष पर स्ट्रिंग चढ़ा देगा, उसी से सीता का विवाह किया जाएगा. सीता माँ लक्ष्मी की अवतार थी और उन्होंने बचपन में धनुष को बड़े ही आराम से उठा लिया था.
स्वमवर में बहुत सारे राजाओं और राजकुमारों को बुलाया गया. लेकिन उनमें से कोई भी धनुष को नहीं उठा पाया.
अंत में राजकुमार राम ने धनुष उठाया ही नहीं बल्कि उस पर स्ट्रिंग चढ़ाते हुए उसके दो टुकड़े कर दिए. सभा में बैठे सभी लोग आश्चर्यचकित थे और सोच रहे थे कि इतने छोटे से राजकुमार ने शिव धनुष कैसे उठा लिया?
राजा जनक ने घोषणा की कि श्री राम ही सीता के पति बनेंगे. लेकिन तभी ऋषि परशुराम (जो बात निडर थे) वहाँ आ गए. परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार थे और वे राम पर बहुत क्रोधित हो गए.
उन्होंने कहा कि जब तक राम मेरे धनुष को स्ट्रिंग नहीं करेंगे. राम का विवाह सीता से नहीं होगा. उनका धनुष विष्णु भगवान का धनुष था.
प्रभु श्री राम ने बड़ी सरलता से उस धनुष पर भी स्ट्रिंग लगा दिया और परशुराम की तरफ़ तीर निशाना किया. अब परशुराम डर गए और भगवान राम से माफ़ी माँगने लगे. श्री राम ने उन्हें माफ़ कर दिया और उन्हें जाने दिया.
राजा जनक का एक छोटा भाई था जिसका नाम क़ुशाध्वज था. उसकी दो बहुत सुंदर बेटियाँ थी, जिनका नाम मांडवी और श्रुतकीर्ति था.
ऋषि विश्वामित्र ने राजा जनक को सुझाया कि वे भरत की शादी मांडवी से और शत्रुघ्न की शादी श्रुतकीर्ति से कर दें.
राजा दशरथ को निमंत्रण भेजा गया और राजा दशरथ अपनी तीनो रानियों को लेकर मिथिला आए और एक ही समय में चारों भाईयों की चारों बहनो से धूमधाम से शादी की गई.
राम की सीता से, लक्ष्मण की उर्मिला से, भरत की मांडवी से और शत्रुघ्न की श्रुतकीर्ति से शादी सम्पन्न हुई. यह कहानी छोटे बच्चों की कहानियाँ में से एक अच्छी कहानी है.
४. श्री राम का राज-तिलक
अब राजा दशरथ बूढ़े हो चले थे. उन्हें अपने राज्य के लिए युवराज चाहिए था, जो आगे चलकर अयोध्या का राजा बन सके. अब उनके चार पुत्र थे. राजा को अपने चारों बेटों की जाँच पड़ताल करनी थी. उन्हें सबसे विनम्र, वीर,त्यागी और प्रजा का ध्यान रखने वाला राजकुमार चुनना था, युवराज पद के लिए.
राजा ने बहुत सोच-विचार के बाद यह निर्णय लिया कि राम युवराज बनने के लिए बिल्कुल सही है. उन्हें पता था कि राम निडर, शक्तिशाली,बुद्धिमान,विनम्र और सब के लिए दया भाव रखते हैं.
वे निश्चित थे कि राम अपनी हर चीज़ से ऊपर अपनी ज़िम्मेदारियों को रखेंगे. वे सारी प्रजा का ध्यान रखते हुए ही राज्य करेंगे.
उन्होंने राज्यसभा में घोषित किया कि राम ही युवराज बनेंगे. सभी बहुत ख़ुश थे. पूरा राज्य ख़ुशियाँ मना रहा था. उसी समय रानी कैकेयी की दासी मंथरा ने उनके कान भरने शुरू किए. मंथरा ने कैकेयी को डराया कि अगर राम राजा बन गए तो भरत को वनवास भेजेंगे और उनकी सारी शक्तियाँ छीन लेंगे. रानी कैकेयी उसकी बातों में आ गयी.
बहुत साल पहले, रानी कैकेयी ने राजा दशरथ की युद्ध में जान बचायी थी. उनसे दो वरदान माँगे थे. वे कभी भी इच्छानुसार कुछ भी माँग सकती हैं और कभी भी. उसने अपने वरदनो का प्रयोग किया. राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास और भरत के लिए राजगद्दी.
५. राम का वनवास (रामायण की कहानियां)
“प्राण जाए पर वचन न जाए” श्री राम ने अपने पिता के वचन को निभाने का प्रण लिया. वे एक आज्ञाकारी पुत्र थे.
वे अपनी माता कौशल्या से मिलने गए. रानी कौशल्या अपने आप को रोक न पायी और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी,”तुम जंगल में चौदह वर्ष कैसे रह पाओगे?”
राम ने बहुत प्यार से अपनी माँ को समझाया कि चौदह वर्ष तो पलक झपकते ही निकल जाएँगे. सीता ने भी प्रभु राम के साथ वन में जाने का निर्णय लिया. सीता जी ने कहा कि प्रभु राम आपके बिना ये महल मेरे किस काम का? मैं भी आपके साथ चलूँगी.
सीता की तरह लक्ष्मण ने भी भाई का साथ निभाने का प्रण लिया. मैं भाई को कष्ट के समय में अकेले ने नहीं छोड़ सकता. मैं भी आपके साथ जाऊँगा.
राम,सीता और लक्ष्मण राजसी कपड़े, ज़ेवर, दास और दासी सब कुछ छोड़कर जंगल की तरफ़ चल देते हैं.
यह छोटे बच्चों की कहानियो में से एक प्रेरणदायक कहानी है. राम के आज्ञाकारी होने की, अपने पिता के वचन को निभाने की.
६. भरत की अयोध्या वापसी
भरत और शत्रुघ्न अपनी नानी के घर गए हुए थे. जब पीछे से राम बनवास चले गए. जब वे नगर में वापिस लौटे, तो पूरी अयोध्या नगरी शोक में डूबी थी. उन दोनो को किसी दुखी समाचार की शंका होने लगी. दोनो राजकुमार महल की ओर भागे.
वे अपनी माँ के कक्ष में गए. तब रानी कैकेयी ने उन्हें बताया कि राजा दशरथ की मृत्यु हो चुकी है. राम को चौदह वर्ष का वनवास हो गया है. अब भरत को राजा बनाया जाएगा.
भरत को पूरी कहानी पता चली. वे अपनी माता से बहुत ग़ुस्सा हुए. उन्हें अपने ऊपर ग्लानि हुई. भरत अपनी माँ से बोले ,’हे माँ ये तुमने क्या कर दिया? पिता का साया छीन लिया.
भाइयों को अलग कर दिया. “कैसी माँ हो तुम?” उन्होंने माता कौशल्या से माफ़ी माँगी और अपने पिता का अंतिम संस्कार किया.
७. राम-भरत मिलाप
ये रामायण की सबसे प्रसिद्ध घटना है. भाई-भाई के प्रेम का इतिहास का सबसे बड़ा उदाहरण है. राजकुमार भरत अपने बड़े भाई राम से मिलने को तरस जाते है. वे बड़े दुखी है कि उनके कारण उनका भाई कष्ट में है.
वे अपनी सेना,अपनी तीनो माताएँ, कुलगुरु, महाराजा जनक और अन्य मान्य गणो को लेकर श्री राम से मिलने चित्रकूट की तरफ़ चल पड़ते हैं.
जैसे ही भरत भाई राम को देखते है, उनके पैरो में गिर जाते हैं, उनसे माफ़ी माँगने लगते है. उनके आँसू नहीं रुकते. भगवान राम उन्हें उठाकर, अपने सीने से लगा लेते हैं. दोनो भाइयों के आँसू रुक ही नहीं रहे हैं.
भरत पिता दशरथ की मृत्यु के बारे में बताते हैं. श्री राम,सीता और लक्ष्मण बहुत दुखी होते हैं. भगवान राम नदी के किनारे अपने पिता राजा दशरथ को श्र्द्धांजलि देते हैं और जल अर्पण करते हैं.
भरत राम से वापिस अयोध्या चलने को कहते है और उनसे अपना राज्य सम्भालने के लिए प्रार्थना करते हैं. लेकिन प्रभु राम मना कर देते है. वे अपने पिता के दिए हुए वचन से बंधे हैं. वे वापिस नहीं जा सकते. भरत दुखी मन से अयोध्या वापिस चल देते हैं.
वे श्री राम से कहते हैं कि “अयोध्या पर केवल आपका अधिकार है. मैं सिर्फ़ चौदह वर्ष तक अयोध्या की देखभाल करूँगा और मैं सिंहासन पर आपकी चरण पादुकाएँ रखकर, आपको महाराज मानकर, आपके प्रतिनिधि के रूप में राज्य के काम करूँगा. आपको वनवास के तुरंत बाद अयोध्या लौटना है नही तो मैं अपने प्राण त्याग दूँगा.”
श्री राम अपने छोटे भाई का प्यार देखकर रोने लगते है और अपनी चरण पादुकाएँ उन्हें दे देते हैं. भरत चरण पादुकाओं को बड़े सम्मान से अपने सर पर रखकर दुखी मन से अयोध्या की ओर चल पड़ते हैं.
ये बच्चों की कहानियाँ में से एक सबसे प्रेरणादायक कहानी है.
इससे आगे की बच्चो के लिए रामायण की सुप्रसिद्ध लघु कथाएँ हम अपने अगले आर्टिकल part-2 में लाने वाले हैं.
निष्कर्ष – Conclusion
हम इस आर्टिकल में बच्चों के लिए रामायण की कहानियां और सुप्रसिद्ध कथाएँ बहुत ही सरल भाषा में लेकर आए हैं. घर में कोई भी दादा-दादी, मम्मी-पापा, चाचा-बुआ इन कहानियो को बच्चों को सुना सकता है. अपने देश की संस्कृति बच्चों को सिखा सकते है. ये प्रेरणदायक कहानी बच्चों को ज़रूर सुनानी चाहिए.
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आपका बच्चा सफल हो!
बहुत सारे प्यार के साथ,
आपकी मित्र विभा शर्मा.
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